जल संसाधन

जल संसाधन
  • सिचाई-भारत में 84% जल सिचाई के काम आते है 1 किलोग्राम गेहूँ मे करीब-करीब 1300-1500 लीटर जल की आवश्यकता होती है ।
  • पेय जल आपूर्ति- घरेलू उपयोग जैसे पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, नहाने के लिए, तथा अन्य दैनिक कार्यों के लिए जल का उपयोग होता है ।
  • मछली पालन- अलवण जल मे मछली का पालन किया जाता है ।
  • जल परिवहन-जल परिवहन उपयोगी होने साथ सस्ता भी है । इसलिए इसका उपयोग इस रूप में भी किया जाता है ।
  • मनोरंजन-मनोरंजन के लिए तरण ताल तथा जल क्रीडा स्थल बनाए जाते है ।
  • शक्ति उत्पादन – पन बिजली बनने के लिए भारी मात्रा में पानी को काफी ऊंचाई से निरंतर टरबाइनों पर गिराना पड़ता है , शक्ति उत्पादन में 3.6% जल का का उपयोग होता है ।
  • उधोग-उधोग मे जल की व्यापक उपयोगिता है । इसमें कुल जल का 4% भाग उपयोग किया जाता है।
  • पृष्ठीय जल- यह जल नदियों, झीलों, तालाबों में पाया जाता है । पृष्ठीय जल का मूल स्रोत वर्षा का जल है। मानव द्वारा इस जल का उपयोग पीने के लिए तथा कृषि, घरेलू उपयोग और उधोग के लिए भी किया जाता है।
  • भौम जल- वर्ष से प्राप्त जल का एक अंश पृथ्वी पर रिसकर नीचे चला जाता है जो भौम जल कहलाता है। भौम जल भी एक महावपूर्ण संसाधन है जिसका उपयोग कृषि और घरेलू कार्यों मे किया जाता है ।
  • वायुमंडलीय जल- यह जल वाष्प के रूप में पाया जाता है । वर्ष एवं हिमपात के रूप मे धरातल पर पहुँचता है । इसका उपयोग भी कृषि कार्यों मे होता है ।
  • महा सागरीय जल-पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग जलीय है। महासागरीय जल लवणीय है लेकिन अलवाणीय जल का भी स्रोत है। महासागरीय जल का उपयोग परिवहन के रूप मे किया जाता है। तथा इस जल में मत्स्य संसाधन पाए जाते हैं ।
  • मकानों की छत पर गिरे वर्ष के जल का संग्रहण
  • खेतों और गांवों में तालाब द्वारा वर्ष जल का संग्रहण
  • मेड़बंदी
  • सीढ़ीदार खेती
  • वन रोपण
  • जल रिसाव तालाब
  • खेतों की गहरी जुताई
  • नदियों पर बांध बनाकर तथा विशाल कृत्रिम झील बनाकर जल का संरक्षण किया जा सकता है ।
  • प्रदूषित जल का शुद्धिकरण- आज दूषित जल को साफ करके पीने योग्य बनने के लिए तकनीक उपलब्ध है । आवश्यकता है इसे उपयोग में लाने की । उधोग मे पानी का उपयोग घटाओं , चक्रीकरण करो और पुनः उपयोग करो की विधि पर जोर दिया जा रहा है ।
  • सिंचाई की नई विधियाँ – बाढ सिंचाई में बहुत सा पानी बर्बाद चल जाता है । इसके स्थान पर ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना चाहिए
  • सिंचाई में नालियों के स्थान पर पाइपों का उपयोग किया जाना चाहिए ।
  • कम जल चाहने वाली फसलें बोनी चाहिए
  • अधिक वृक्ष रोपण करके जल का संरक्षण करना चाहिए

उत्तर-भारत में संभावित पृष्ठीय जल नदियों, तालाबों, झीलों में पाया जाता है । भारत में हिमालयी नदी तंत्रों का भरपूर जल संसाधन उपलब्ध है । के. एल. राव के अनुसार भारत में कुल नदियों (धाराओं) की संख्या 10,360 है।

भारत की समस्त नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है लेकिन इनका केवल 32% जल ही उपयोग के लिए उपलब्ध है । कुल पृष्ठीय जल का 60% भाग सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र में से होकर आता है ।

भारत में सिन्धु और उसकी सहायक नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 73 अरब घन मीटर है । गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों का जल उनकी सहायक नदियों सहित क्रमशः 501 तथा 537 अरब घन मीटर है । गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ संसार की सबसे बड़ी नदियों में से हैं । भारत की सभी नदियों का वार्षिक जल प्रवाह विश्व की सभी नदियो के कुल वार्षिक जल प्रवाह के 6% के लगभग है।

दक्षिण भारत की बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली चार नदियाँ गोदावरी, कृष्णा, महानदी एवं कावेरी नदियों का कुल जल प्रवाह 275 अरब घन मीटर है । अग्रलिखित सारणी नदियों के पृष्ठीय जल का वितरण दिखाती है-

उत्तर-भारत में वर्षा से प्राप्त जल की कुल मात्रा का लगभग 22% भाग जल भूमि द्वारा सोख लिया जाता है । इसका 60% भाग मिट्टी की ऊपरी सतह तक ही पहुँचता है। यही जल कृषि उत्पादन के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है । देश के कुल भौम जल भंडारण का लगभग 42% भाग भारत के विशाल मैदानों में पाया जाता है । इसके कारण निम्नलिखित हैं-

  1. विशाल मैदानों में जलोढ़ मृदा पाई जाती है जिसमें जल आसानी से रिस जाता है।
  2. इन मैदानों में बहने वाली नदियाँ सदानीरा हैं । इनमें वर्ष भर जल प्रवाह उच्च रहता है।
  3. इन मैदानों में पर्याप्त गहराई तक अवसादी शैल पाई जाती है जिसमें जल की मात्रा का अधिक संग्रहण होता है
  4. इन मैदानों में मानसून वर्षा भी पर्याप्त होती है जो जल का एक स्रोत है और इस वर्षा का जल रिसकर भौम जल बनाता है ।

उत्तर-वर्षा जल संग्रहण भौम जल में पुनरभरण की एक तकनीक है । इसमें स्थानीय रूप से वर्षा जल को एकत्र करके भूमि जल भंडारों को भरना है जिससे भौम जल के जल पटल में जल की कमी न रहे और इस जल से लोगों की स्थानीय माँग की पूर्ति होती रहे । वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता के निम्न कारण हैं-1. जल की निरन्तर माँग को ‘पूरा करते रहना ।2. नालियों को रोकने वाले सतही प्रवाह को कम करना ।3. सड़कों के जल भराव को रोकना ।4. भौम जल प्रदूषण को रोककर प्रदूषण को घटाना ।5. भौम जल की गुणवत्ता को सुधार कर उसे बढ़ाना ।6. मृदा अपरदन को रोकना ।7. ग्रीष्म काल में जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना ।

उत्तर–राष्ट्रीय जल नीति में पेय जल की आपूर्ति को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई । इसलिए पेय जल आपूर्ति और स्वच्छता की आवश्यकता को ग्रामीण और नगरीय दोनों प्रकार की बस्तियों में विस्तार से प्रयत्न किए गए । 1991 में देश में केवल 62.72% घरों में ही सुरक्षित पेय जल की व्यवस्था थी । गाँवों में 55.92% तथा नगरों में 81.59% । आठवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान त्वरित नगर जल आपूर्ति कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया । इसका उद्देश्य 20000 से कम जनसंख्या वाले नगरों को जल की आपूर्ति निश्चित करना था । भारत के अधिकतर नगरों की जल आपूर्ति की माँग कृत्रिम जलाशयों से पूरी होती है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू उपयोग के लिए भौम जल क्षेत्रों से जल प्राप्त किया जाता है । 1972 में भारत के एक-चौथाई गाँव समस्या गाँव के रूप में वर्गीकृत थे । नौवीं पंवर्षीय योजना में देश की प्रत्येक बस्ती में पेय जल उपलब्धता कराने का प्रावधान था, परन्तु आज भी भारत के प्रत्येक गाँव में सुरक्षित पेय जल की व्यवस्था नहीं की जा सकी है ।

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