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1. लोकतंत्र क्या है ?
लोकतंत्र को अंग्रेजी मे Democracy कहा जाता है । यह Demos तथा Kratia दो शब्दों के मिलने से बना है। जिसका अर्थ होता है लोगों का शासन । इसमें जन प्रतिनिधि मैदान में उतरते है यानि चुनावी प्रक्रिया मे भाग लेते है। और आम जनता अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देकर चुनती है। जनता ही यह तय करती है किस जनप्रतिनिधि की कार्यक्रम और नीतियाँ देश हित में है। किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं है कोई किसी भी उम्मीदवार को वोट दे सकता है।
2. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्या है ?
सत्ता मे साझेदारी का अर्थ है जनता के द्वारा सरकार को सहयोग देना अथवा सहयोग वापस लेना । सत्ता मे साझेदारी से अधिकांश लोग सत्ता से जुड़ जाते है । जिससे लोकतंत्र की जड़े मजबूत हो जाते है सत्ता की साझेदारी को लोकतंत्र की आत्मा भी कहा गया है ।
3. सांप्रदायिकता क्या है ?
यह एक उग्र विचारधारा है , आपसी मत भिन्नता को सम्मान देने के बजाय विरोधभास का उत्पन्न होना , अथवा ऐसी परिस्थितियों का उत्पन्न होना जिससे व्यक्ति किसी अन्य धर्म के विरोध में अपना व्यक्तव प्रस्तुत करें सांप्रदायिकता कहलाता है।
4. विविधता राष्ट के लिए कब घातक बन जाती है ?
जब धर्म, क्षेत्र, भाषा, जाति, संप्रदाय, के नाम पर लोग आपस में उलझ जाते है , तो यह लोकतंत्र व्यवस्था कमजोर होकर सीमा का उलंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्य संभावी हो जाता है और राष्ट्र के लिए घटक बन जाती है ।
5. विविधता मे एकता का अर्थ बताए ।
विविधता मे एकता भारत की अपनी विशेषता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। भारत विविधता , धार्मिक तथा सांस्कृतिक आधार पर है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई , बौद्ध विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग भारत में निवास करते है , तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान भी अलग-अलग है । लेकिन यहाँ के लोग एक दूसरे के पर्व त्योहार में शामिल होते है । और अलग-अलग होते हुए भी सभी भारतवासी है।
6. सामाजिक विभेद किस प्रकार सामाजिक विभाजन के लिए उत्तरदायी है ?
समाज में व्यक्ति के बीच कई प्रकार के सामाजिक विभेद देखने को मिलते है जैसे- जाति के आधार पर, आर्थिक स्तर पर , धर्म के आधार पर, तथा भाषा के आधार पर
ये सामाजिक विभेद तब सामाजिक विभाजन का रूप ले लेते है जब इनमे से कोई एक सामाजिक विभेद दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
7. सामाजिक विभेद और सामाजिक विभाजन मे अंतर स्पष्ट करें।
जब विभिन्न जाति , धर्म, भाषा, संप्रदाय के द्वारा लोगों के बीच विभिन्नताए निर्मित की जाती है, तो वे सामाजिक विभेद का रूप धरण कर लेती है। वही दूसरी तरफ वहीं दूसरी तरफ धन, क्षेत्र, रंग आदि के आधार पर विभेद सामाजिक विभाजन का रूप धारण कर लेती है। गोरों का काले के प्रति , अमीरों का गरीबों के प्रति व्यवहार सामाजिक विभाजन का कारण बन जाता है, भारत मे स्वर्णों और दलितों के अंतर ने सामाजिक विभाजन का रूप ले रखा है ।
8. सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
ब्रिटिश शासकों ने फूट दालों और राज करो की राजनीति को अपनाकर हमारे देश पर कई सौ वर्षों तक शासन किया। आज भी सामाजिक विभेद राजनीतज्ञों के लिए एक अस्त्र बना हुआ है । राजनीतक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन और उनकी जीत सुनिश्चित करने मे सामाजिक विभेद सहायक हो जाता है । विभिन्न राजनीतिक दल अपनी अपनी प्रतिद्वंदिता का आधार भी है। उत्तरी आयरलैंड में अलग-अलग धर्म मानने वाले लोग भी समूहों मे बटे हुए है । सबसे बड़ी बात यह है की वहाँ दो प्रमुख राजनीतिक दल भी इसी आधार पर गठित है।
9. सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम किन-किन बातों पर निर्भर करते है ?
सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है:-
- सामाजिक विभेद की राजनीति का अच्छा या बुरा परिणाम इस बात पर निर्भर करता है की लोगों मे अपनी पहचान के लिए कितनी चेतना है।
- लोकतांत्रिक समाज मे अलग-अलग समुदायों के लोगों की अपने हित के लिए अलग-अलग मांग होती होती है ।
- सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम सरकार की विभिन्न समुदायों की मांगों के प्रति सोच पर भी निर्भर करता है।
10. हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है। कैसे?
सामाजिक विभिन्नताओं से सामाजिक अंतर स्थापित होता है। ये सामाजिक अंतर जब अन्य सामाजिक अंतरों से से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते है अर्थात जब अंतरों में से कोई एक अंतर सभी अंतरों मे से अलग या महत्वपूर्ण दिखने लगता है या किसी खास अंतर के प्रति समय की सवर्धन शीलता बनने लगती है। इस प्रकार ऐसे समुदाय, समुदाय विशेष के प्रति अलग लगने लगते है और सामाजिक विभाजन की स्थिति बनने लगती है। इस प्रकार हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है।
11. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते है?
सामाजिक अंतर भारत में केवल जाति ही नहीं बल्कि शिक्षा और आर्थिक व्यवस्था भी समाज में अंतर पैदा करती है। एक जाती के होने बावजूद यदि शिक्षा और अर्थ में भेद है, तो यहाँ भी सामाजिक अंतर उत्पन्न होता है लेकिन यह सामाजिक अंतर तब सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है जब एक दूसरे से अपने आप को ऊपर और दूसरे को नीच समझने लगते है तब सामाजिक विभाजन स्पष्ट होने लगता है। तब जाति गौण पड़ जाती है, उदाहरण के लिए हम कह सकते है की जैसी प्राचीन परंपरा रही है की शादी- विवाह अपनी ही जाति मे होती है ।
12. सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन बातों पर निर्भर करता है?
सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम सर्वप्रथम सरकार के गठन पर पड़ता है। विधायिका या संसद में विभिन्न समाजों का प्रतिनिधित्व रहता है। किसी राजनीति दल में भी विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि रहते है। सरकार का गठन करते समय मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को यह ध्यान देना पड़ता है की सरकार मे सभी समाजों का प्रतिनिधित्व रहे। इस प्रकार हम देखते है की सामाजिक विभजन की राजनीति का पहला परिणाम सरकार रूप पर पड़ता है। दूसरा परिणाम यह पड़ता है की विभिन्न समाजों मे एकता बनी रहती है। उदाहरण के लिए भारत के समाज को लिया जा सकता है, भारत के विभिन्न राज्यों की वेश-भूसा , खान-पान , भाषा आदि में भिन्नता के बावजूद सभी अपने को भारतीय समझते है।
13. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी है? स्पष्ट करें ।
भारत मे श्रम विभाजन के आधार पर जातिगत असमानताएँ जारी है जैसा की कुछ अन्य देशों मे भी है। भारत की तरह भी दूसरे देशों मे भी पेश का आधार लाभग वंशानुगत भी है। पेश एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे स्वतः चली जाती है। पेशे पर आधारित समुदाय व्यवस्था ही जाती का रूप ले लेती है यह व्यवस्था जब स्थायी हो जाती है तब यह श्रमविभाजन का अतिवादी रूप कहलाने लगती है। वास्तव में इसे ही हम जाती के नाम पर जानने लगते है। खासकर शादी-विवाह और अनेक अनिवार्य व्यवस्थाओं में यह स्पष्ट रूप से देखा जाता है । इस प्रकार भारत में सदियों से जातिगत असमानताएँ जारी है ।
14. भारत मे विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
भारत के विधायिकाओं मे महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है। स्वतंत्रता आंदोलन मे जिस प्रकार की भागीदारी महिलाओं की थी आज विधायिकाओं मे उनकी पूछ उतनी नहीं है। कोई राजनीति दल उनकी संख्या के हिसाब से उन्हे टिकट नहीं देना चाहता है। विधायिकाओं मे अपनी भागीदारी के लिए महिलाये वर्षों से संघर्ष करती आर रही है। लेकिन उन्हे केवल भरोसा मिलता है। इसके अलावा और कुछ भी नहीं । पुरुष प्रधान समाज उन्हे आरक्षण देना भी नहीं चाहता है। जब महिलाओं एक आरक्षण का बिल आता है तो पक्ष और विपक्ष मे उलझ कर रह जाता है इसके विरोश के कई मुद्दे खोज लिए जाते है।
15. किन्ही दो प्रावधानों का उल्लेख करे जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसके दो प्रावधान निम्नलिखित है:-
- भारत मे राज्य का कोई धर्म नहीं है यह न तो किसी धर्म का समर्थन कर सकता है और न ही किसी धर्म का विरोध ही कर सकता है।
- धर्म के आधार पर किसी शिक्षण संस्थान मे प्रवेश लेने से किसी को रोका नहीं जा सकता है।
16. किन आधारों पर सामाजिक बटवारा होता है?
निम्नलिखित आधारों पर सामाजिक बटवारा होता है:-
- जाती के आधार पर
- धर्म के आधार पर
- क्षेत्रीय भावना के आधार पर
- उंच-नीच की भावना के आधा र पर
17. भारत मे जाति या जातीयता का उद्भव कैसे हुआ ?
वैदिक काल मे भारतीय समाज को चार वर्णों मे विभाजित किया गया था। केवल श्रम विभाजन व्यवस्थित ढंग से सम्पादन के लिए यह किया गया था । एक ही घर मे चारों वर्णों के लोग रहा करते थे । साथ-साथ खाना -पीना होता था । इसमें कोई मन मुटाव नहीं था । जाति कर्म पर आधारित थी धीरे -धीरे यह व्यवस्था जन्म के आधार मे बदल गई । अब तो व्यक्ति जो काम करता था उसके वंशज भी वही काम करने के लाइ विवश हो गए । अब वर्ग को जाती कहा जाने लगा । अब जो जिस जाति का होता था उसका शादी-विवाह भी उसी जाति में होने लगा आगे चलकर जाती भी उपजाति या उपजातियाँ होने लगी। भारत मे में जाति या जातीयता का उद्भव भी ठीक उसी प्रकार से हुआ ।
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